मनीष वाघेला
थांदला। थांदला गौरव 108 महामुनि पुण्यसागरजी महाराज द्वारा एक वर्ष पूर्व दिगम्बरी दीक्षित हुए सरल स्वभावी मुनि श्री पूर्णसागरजी महाराज ने राजस्थान के धरियावद नगर में आचार्य श्री वर्धमानसागरजी, आचार्य श्री वर्धमानसागरजी, मुनि श्री पुण्यसागरजी सहित 52 साधुओं के सानिध्य में प्राणान्त तक सभी आहार का त्याग कर यम संलेखना धारण कर लिया है। राजस्थान के धरियावद नगर में उनकी अंतिम संयम साधना चल रही हैं, ऐसे में थांदला सहित अनेक राज्यों के दर्शनार्थी उनके दर्शन वंदन करने पहुँच रहे है।
मुनिश्री संथारा संलेखना लेने से पूर्व समस्त साधुओं, संघ, समाज व परिजनों सहित 84 लाख जीव योनियों से क्षमा का आदान-प्रदान किया। उनकी अंतिम आराधना में समाधि बनी रहे इस हेतु उपस्थित आचार्य श्री वर्धमानसागरजी, मुनि श्री पुण्यसागरजी एवं अन्य साधु निरंतर धर्म उपदेश दे रहे है। संघ प्रवक्ता पवन नाहर व राजेश पंचोलिया को चर्चा में बताया गया की आचार्य श्री वर्धमानसागरजी के अनुसार जैन धर्म में संलेखना समाधि सभी का अंतिम मनोरथ होता है जिसे शारिरिक अस्वस्थ्यता अथवा अपनी मृत्यु निकट जानकर साधक आत्मा निर्भय होकर चारों आहार का त्याग कर उपवास के सहारें अपनी अंतिम क्रिया करती है। इस धर्म आचरण से यह मानव जीवन सफ़ल हो जाता है व जीव अधिक तम 7 भव देव के व 8 भव मनुष्य के धारण कर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। आपने बताया कि मनुष्य इस देह के माध्यम से व्रत संयम लेकर आराधना करता है लेकिन जब यह देह तप और संयम में बाधा उत्पन्न करने लगे व नश्वरता को महसूस करें तब शास्त्रों में बताई गई विधि अनुसार देह ममत्व को छोड़ने के लिए क्रमशः नियम और यम संलेखना के माध्यम से आहार त्याग का अभ्यास करते हुए वह आमरण अनशन (उपवास) ग्रहण करने का विधान है। इस विधि को राग-द्वेष का समूल नाश करने की प्रक्रिया भी कहते है। उन्होंनें संघ समाज से कहा कि ऐसी विरली आत्मा होती है जो ऐसी दुष्कर आराधना करती है व विरले ही लोग उनके दर्शन का सौभाग्य अर्जित कर पाते है। क्योंकि ऐसी क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ आत्मा का दर्शन तीर्थ रूप होता है जो हमें भी मोक्ष के निकट लाता है।
मुनिश्री का हुआ केश लोचन
जानकारी देते हुए थांदला संघ के अनूप मिंडा, संजय कोठारी, महावीर मेहता, विजय भीमावत, अरुण कोठारी, प्रियंक मेहता ने बताया कि मुनिश्री की अंतिम आराधना में सभी उपस्थित आचार्य व साधू सहयोगी बन रहे है। ऐसे में उनका अंतिम केश लोचन स्वयं आचार्य श्री वर्धमानसागरजी, मुनि श्री पुण्यसागर, श्री हितेंद्रसागरजी, मुनि श्री चिंतनसागरजी सहित अन्य मुनिराजो ने किया। शासन प्रभावक वीणा दीदी ने वैराग्यमय भजन गाकर तप की अनुमोदना की। वैरागी विकास भैया, शरद भैया व शशिकांत भैया ने बताया कि अंतिम मनोरथ पर आरूढ़ संथारा साधक मुनि श्री पूर्णसागरजी पुण्य भूमि थांदला में आजादी से पूर्व 1 जनवरी 1943 को प्रतिष्ठित व्यापारी सुखलाल मेहता के यहाँ सूड़ीबाई की कुक्षी से जन्में है, आपका गृहस्थ अवस्था का नाम रतनलाल मेहता हैं। आपने कुशलता से सांसारिक कार्य सम्पन्न करते हुए 9 जुलाई 2023 को सिद्धक्षेत्र सोनगिरि में मुनि श्री पुण्यसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की वही 6 मई 2024 को जन्मस्थली थांदला में ही मुनि दीक्षा ग्रहण की। आपकी धर्मसहायिका पूर्व में ही मुनि श्री पुण्यसागरजी से दीक्षा लेकर आर्यिका श्री पूर्णिमामति माताजी बन कर जिन शासन की सेवा करते हुए समाधि प्राप्त कर चुकी है। उल्लेखनीय है कि थांदला नगर से अभी तक 6 दिगम्बरी दीक्षा हो चुकी है जिसमें मुनि श्री पुण्यसागरजी, श्री परमेष्ठिसागरजी, श्री महोत्सवसागरजी, श्री उपहारसागरजी, श्री पूर्ण सागरजी व आर्यिका श्री पुण्यमति माताजी हुई है। जिनमें से 5 आत्माएं एक ही परिवार से है।












